ईश-दर्शन: मनन-उपनिषत्Philosophy of God in Hinduism; text with interpretation. |
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अथवा अनन्त अपने अर्थात् अहंकार अहंभाव आप इस ईश ईश की ईश्वर उपनिषद् उस उसे एक एवं ऐसा ऐसे कर करता है करना चाहिए करने कर्म का कार्य किया की के कारण के द्वारा के लिए को कोई गया है गीता चाहिये चित् जगत् जब जा जाती जीवन में जैसे जो ज्ञान तक तत्त्व तथा तब तात तू तो दिल्ली दोनों ध्यान नहीं नास्तिकता नित्य पर परम पूजा प्रकृति प्राप्त हो बन बिना ब्रह्म भवति भारत भाव भी मनन में मेरे मैं मोक्ष यदि यह रहता रहा है रूप से वह वही वायु वाला वाले वेद शक्ति शिव शिवानी श्रद्धा संकल्प संसार में सः सब कुछ सर्वत्र सारे सृष्टि स्वरूप हर हि ही हुआ हुए हे है और है तो हैं हो जाता है होता है होती होने becomes consciousness faith form forms Hence knowledge known life Lord mind nature prayer Shiva Truth world